मूर्ख मित्र
पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्यो हितकारकः ।
अर्थात
अर्थ: हितचिंतक मूर्ख की अपेक्षा अहितचिंतक बुद्धिमान अच्छा होता है।
मूर्ख मित्र जिसका अर्थ होता है- एक ऐसा दोस्त जिसकी समझ कम हो या जो नासमझी में काम करे, जिससे अक्सर खुद को या दूसरों को नुकसान हो जाता है। ऐसे दोस्त की हरकतें भले ही जानबूझकर बुरी न हों, लेकिन उनकी नादानी से परेशानियाँ खड़ी हो जाती हैं।
यह पंचतंत्र के प्रथम तंत्र की उन्नीसवीं कहानी है, करकट दमनक से कहता है कि तूने असंभव को संभव बनाने का प्रयंत्न किया है, तूने स्वामी का हितचिंतक होके अहित कर दिया है। ऐसे हितचिंतक मूर्ख मित्रों की अपेक्षा अहितचिंतक बैरी अच्छे होते हैं। हितचिंतक मूर्ख बन्दर ने हितसम्पादन करते-करते राजा का खून ही कर दिया था। तब दमनक ने पूछा ये कैसे तब करकट उसे बन्दर और राजा की यह कहानी जो इस प्रकार है-
किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रूप में रहता था। वह राजा का बहुत विश्वासपात्र और भक्त था। अन्तःपुर में ही वह बेरोक-टोक जा सकता था।
एक दिन राजा सो रहा था और बन्दर पंखा कर रहा था, तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठी। तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया। मक्खी तो उड़ गई, किन्तु राजा की छाती तलवार की चोट से टुकड़े हो गई और राजा मर गया।
कथा सुनाकर करटक ने कहा- इसीलिए मैं मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान शत्रु को अच्छा समझता हूँ।
इधर दमनक-करटक बातचीत कर रहे थे, उधर शेर और बैल का संग्राम चल रहा था। शेर ने थोड़ी देर बाद बैल को इतना घायल कर दिया कि वह ज़मीन पर गिरकर मर गया।
मित्र-हत्या के बाद पिंगलक को बड़ा पश्चात्ताप हुआ, किन्तु दमनक ने आकर पिंगलक को फिर राजनीति का उपदेश दिया। पिंगलक ने दमनक को फिर अपना प्रधानमन्त्री बना लिया। दमनक की इच्छा पूरी हुई। पिंगलक दमनक की सहायता से राज-कार्य करने लगा।
।। प्रथम तन्त्र समाप्त॥