सीख न दीजे बानरा
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।
अर्थात
अर्थ: उपदेश से मूर्खों का क्रोध और भी भड़क उठता है, शान्त नहीं होता।
सीख न दीजे बानरा जिसका अर्थ होता है- कि बन्दर को सीख (ज्ञान) नहीं देनी चाहिए। अर्थात ऐसे व्यक्ति को ज्ञान देना वेकार है जो उसके महत्व को नहीं समझते है। जैसे एक बंदर को कितना भी सिखाओ, वह इंसान की तरह व्यवहार नहीं कर सकता, ठीक वैसे ही कुछ लोग अपनी आदतों या विचारों को नहीं बदलते, चाहे उन्हें कितनी भी अच्छी सलाह क्यों न दी जाए।
यह पंचतंत्र के प्रथम तंत्र की चौदहवीं कहानी है, दमनक ने संजीवक और वैल के बीच फूट डाल चूका है और संजीवक इससे भयभीत है की पिंगलक से वैर करके वो कहा जायेगा इसलिए वो सोचता है कि पिंगलक तो उसका मित्र है तो उसको जाकर समझाता हूँ कि किसी ने तुझे मेरे खिलाफ भड़काया है और जैसा तू समझ रहा है वैसा कुछ नहीं है, मैं तो तेरा हितैसी हूँ, मेरे से वैर छोड़ दे और ये सोच कर संजीवक पिंगलक के पास चला जाता है किन्तु पिंगलक वहाँ पहले से ही क्रोध में बैठा होता है वो जैसे संजीवक को देखता है उसे और क्रोध आ जाता है और वह संजीवक पर झपट पड़ता है और अपने बचाव के लिए संजीवक भी उससे युद्ध करने लगता है। ये सब देख कर करकट को बहुत बुरा लगता है और वह दमनक से कहता है कि ये तूने ठीक नहीं किया दोनों के बीच युद्ध कराके, अगर अभी भी कोई उपाय है तो कर अन्यथा परिणाम बहुत बुरा होगा और अब तुझे ज्ञान देने का क्या लाभ तू उसके पात्र ही नहीं है और अब मैं तेरे साथ रहा तो मेरा भी वही हाल होगा जो सूचीमुख चिड़ियों का हुआ था। तब दमनक उससे कहता है की ये सूचीमुख चिड़िया कौन थी तब करकट उसे सूचीमुख चिड़ियों की कहानी सुनाता है जो इस प्रकार है-
किसी पर्वत के एक भाग में बंदरों का दल रहता था। एक दिन हेमंत ऋतु के दिनों में वहाँ इतनी बर्फ पड़ी और ऐसी हिम-वर्षा हुई कि बंदर सर्दी के मारे ठिठुर गए।
कुछ बंदर लाल फलों को ही अग्नि-कण समझकर उन्हें फूँकें मार-मार कर सुलगाने की कोशिश करने लगे।
सूचीमुख पक्षी ने तब उन्हें वृथा प्रयत्न से रोकते हुए कहा- "ये आग के शोले नहीं, गुञ्जाफल हैं। इन्हें सुलगाने की व्यर्थ चेष्टा क्यों करते हो? अच्छा यह है कि कहीं गुफा-कंदरा में चले जाओ। तभी सर्दी से रक्षा होगी।"
बंदरों में एक बूढ़ा बंदर भी था। उसने कहा- "सूचीमुख इनको उपदेश न दे। ये मूर्ख हैं, तेरे उपदेश को नहीं मानेंगे, बल्कि तुझे मार डालेंगे।"
वह बंदर कह ही रहा था कि एक बंदर ने सूचीमुख को उसके पंखों से पकड़ कर झकझोर दिया।
करटक- इसीलिए मैं कहता हूँ कि मूर्ख को उपदेश देकर हम उसे शान्त नहीं करते, और भी भड़काते हैं। जिस-तिस को उपदेश देना स्वयं मूर्खता है। मूर्ख बंदर ने उपदेश देने वाली चिड़ियों का घोंसला तोड़ दिया था।
दमनक ने पूछा- "कैसे?"
करटक ने तब बंदर और चिड़ियों की यह कहानी सुनाई-