करने से पहले सोचो
उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथाऽपायं च चिन्तयेत्।
अर्थात
अर्थ: उपाय की चिन्ता के साथ, अपाय या दुष्परिणाम की भी चिन्ता कर लेनी चाहिए।
करने से पहले सोचो जिसका अर्थ होता है- कि किसी भी काम को शुरू करने से पहले उसके संभावित परिणामों, लाभों और हानियों पर विचार करना चाहिए। यह एक ऐसी सलाह है जो हमें जल्दबाज़ी में फैसले लेने से रोकती है और हमें विवेकपूर्ण तरीके से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है
यह पंचतंत्र के प्रथम तंत्र की सत्रहवीं कहानी है, जब करकट-दमनक को धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्रो की कहानी सुनाता है तो उसमे पापबुद्धि के गलत योजना की वजह से उसके पिता की मृत्यु हो जाती है तब राजपुरुष पापबुद्धि को पेड़ पर लड़काते हुए कहते है कि कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए उसका परिणाम घातक होते है जैसे उन बगुलों की दशा हुई थी, जिन्हें नेवले ने मार दिया था। तब धर्मबुद्धि राजपुरुष से ये कहानी सुनाने को कहता है तब राजपुरुष उसे बगुले और नेवले की कहानी सुनाता है जो इस प्रकार है-
जंगल के एक बड़े वटवृक्ष की खोल में बहुत-से बगुले रहते थे। उसी वृक्ष की जड़ में एक साँप भी रहता था। वह बगुलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था।
एक बगुला साँप द्वारा बार-बार बच्चों को खाए जाने पर बहुत दुःखी और विरक्त-सा होकर नदी के किनारे आ बैठा। उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे। उसे इस प्रकार दुःखमग्न देखकर एक केकड़े ने पानी से निकालकर उसे कहा-मामा, क्या बात है? आज रो क्यों रहे हो?
बगुले ने कहा-भैया! बात यह है कि मेरे बच्चों को साँप बार-बार खा जाता है। कुछ उपाय नहीं सूझता, किस प्रकार साँप का नाश किया जाए। तुम्हीं कोई उपाय बताओ।
केकड़े ने मन में सोचा, यह बगुला मेरा जन्मबैरी है। इसे ऐसा उपाय बताऊँगा जिससे साँप के नाश के साथ-साथ इसका भी नाश हो जाए। यह सोचकर वह बोला: मामा, एक काम करो! माँस के कुछ टुकड़े लेकर नेवले के बिल के सामने डाल दो। इसके बाद बहुत-से टुकड़े उस बिल से शुरू करके साँप के बिल तक बिखेर दो। नेवला उन टुकड़ों को खाता-खाता साँप के बिल तक आ जाएगा और वहाँ साँप को भी देखकर उसे मार डालेगा।
बगुले ने ऐसा ही किया। नेवले ने साँप को तो खा लिया, किन्तु साँप के बाद उस वृक्ष पर रहने वाले बगुलों को भी खा डाला।
बगुले ने उपाय सोचा, किन्तु उसने अन्य दुष्परिणाम नहीं सोचे। अपनी मूर्खता का फल उसे मिल गया।
पापबुद्धि ने भी उपाय तो सोचा, किन्तु अपाय नहीं सोचा।
करटक ने कहा- इसी तरह दमनक! तूने भी उपाय तो किया, किन्तु अपाय की चिन्ता नहीं की। तू भी पापबुद्धि के समान ही मूर्ख है। तेरे जैसे पापबुद्धि के साथ रहना भी दोषपूर्ण है। आज से तू मेरे पास मत आना। जिस स्थान पर ऐसे-ऐसे अनर्थ हों, वहाँ से दूर ही रहना चाहिए। जहाँ चूहे मन-भर की तराजू को खा जाएँ वहाँ यह भी सम्भव है कि चील बच्चे को उठाकर ले जाए।
दमनक ने पूछा- कैसे?
करटक ने तब लोहे की तराजू की एक कहानी सुनाई।