Vaidikalaya

उत्तरायण और दक्षिणायण




भारतीय संस्कृति और खगोल विज्ञान में उत्तरायण और दक्षिणायन का विशेष महत्व है। यह सूर्य की गति और ऋतुओं में परिवर्तन के आधार पर निर्धारित होता है। यह केवल खगोलशास्त्रीय घटना ही नहीं है, बल्कि इसे अध्यात्म, धर्म और कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है।

उत्तरायण और दक्षिणायन जो कि आयन शब्द से मिलकर बने हैं जिसमे आयन का मतलब होता है परिवर्तन अर्थात सूर्य की स्थिति में होने वाले परिवर्तन को ही उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं किन्तु दोनों ही आयनों में सूर्य की स्थिति अलग-2 होती हैं। अब ये स्थिति क्या है और सूर्य कब कौनसी स्थिति में होता हैं ये सब हम आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से जानने की कोशिश करेंगे। तो चलिए शुरू करते है -


आध्यात्मिक दृष्टिकोण

आधात्मिक और ज्योतिष के अनुसार 1 साल में 12 महीने होते हैं और 12 ही राशियां हैं और सूर्य हर महीने 1 राशि में रहता हैं फिर नया महीना शुरू होने पर वह दूसरी राशि में चला जाता है तो इस प्रकार सूर्य 12 महीनो में इन सभी 12 राशियों में भ्रमण करता है और एक साल को पूरा करता हैं और जब सूर्य इन राशियों में भ्रमण करेगा तो उसकी स्थिति में परिवर्तन होगा तो इस प्रकार सूर्य की स्थिति साल में एक बार उत्तर की ओर और एक बार दक्षिण की ओर होती है तो जिस समय सूर्य उत्तर की ओर होता है तो उसे उत्तरायण कहते हैं और जब दक्षिण की ओर होता हैं तब उसे दक्षिणायन कहते हैं।

संक्रांति का शाब्दिक अर्थ है "संक्रमण" या "परिवर्तन"। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रांति कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है जिससे हर महीने एक संक्रांति होती हैं और इस प्रकार वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं।

उत्तरायण

हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तो इस अंतराल को उत्तरायण कहते हैं। यह भ्रमण 14 जनवरी (मकर संक्रांति) से 21 जून तक चलता हैं।

उत्तरायण में सूर्य का राशियों में भ्रमण
मकर -> कुंभ -> मीन -> मेष -> वृषभ -> मिथुन

उत्तरायण के इन छह महीने को देवताओं का दिन कहा जाता है, क्योंकि यह प्रकाश, उन्नति, और ऊर्जा का प्रतीक है। सूर्य को देवताओं का राजा माना गया है। जब सूर्य उत्तरायण होता है, तो इसे देवताओं के जागने और सक्रिय होने का समय माना जाता है। उत्तरायण के दौरान किए गए कार्य, जैसे यज्ञ, दान, पूजा, और ध्यान, अधिक फलदायी माने जाते हैं। उत्तरायण के समय दिन लंबा और रात छोटी होती है, इसलिए इसमें तीर्थयात्रा, धामों के दर्शन और उत्सवों का समय होता है। उत्तरायण के दौरान तीन ऋतुएं होती है- शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म।

दक्षिणायन

जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं। यह भ्रमण 22 जून से 21 दिसंबर तक चलता हैं। यह समय ऋतु परिवर्तन, आत्मचिंतन, और धार्मिक अनुष्ठानों का होता है। जैसे-जैसे सूर्य दक्षिणायन में आगे बढ़ता है, यह हमें ठहराव, ध्यान और आत्मसुधार का अवसर प्रदान करता है।

>दक्षिणायन में सूर्य का राशियों में भ्रमण
कर्क -> सिंह -> कन्या -> तुला -> वृश्चिक -> धनु

दक्षिणायन के इन छह महीने को देवताओं की रात्रि कहा जाता है, यह आत्ममंथन और साधना का समय माना गया है। दक्षिणायन के समय में रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं, इस दौरान पृथ्वी पर अंधकार बढ़ता है। इसे प्रतीकात्मक रूप से आत्मचिंतन और भीतर की यात्रा का समय माना गया है, यह समय ध्यान, योग और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उत्तम माना गया है। दक्षिणायन को विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए कम शुभ माना जाता है।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक या भौगोलिक दृष्टिकोण से अगर हम देखे तो पृथ्वी का आकर चपटा है और इसपर कई तरह की कल्पित रेखाएं खींची गई है जैसे - भूमध्य रेखा (Equator), कर्क रेखा (Tropic of Cancer), मकर रेखा (Tropic of Capricorn), आर्कटिक वृत (Arctic Circle), अंटार्कटिक वृत (Antarctic Circle)।

जैसा कि हम जानते है कि भूमध्य रेखा पृथ्वी के बीच में खींची गयी है जो पृथ्वी को दो बराबर भागो में बांटती हैं। भूमध्य रेखा के ऊपर (उत्तर मे) कर्क और निचे (दक्षिण मे) मकर रेखा खींची गयी है।



सूर्य की स्थिति हमेशा कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच मे ही रहती हैं अर्थात सूर्य हमेशा कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच में ही भ्रमण करता है और इसी कारण सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन होता है। जब सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर गति करता हैं तब इसे सूर्य का उत्तरायण होना कहते हैं और जब सूर्य कर्क रेखा से मकर रेखा में गति करता हैं तब इसे सूर्य का दक्षिणायन होना कहते है।

उत्तरायण

जब सूर्य मकर रेखा (Tropic of Capricorn) से कर्क रेखा (Tropic of Cancer) की ओर बढ़ता है, तो इसे उत्तरायण कहते हैं। यह हर साल 22 दिसंबर के आसपास से शुरू होता है और 21 जून तक रहता है। अब सवाल आता हैं कि जब सूर्य 22 दिसंबर से कर्क रेखा की ओर गति प्रारम्भ कर देता है तो हिन्दू पंचांग में 14 जनवरी को उत्तरायण का त्योहार क्यों मानते हैं तो इसका कारण यह है कि सूर्य 21 दिसंबर से अपनी स्थिति में परिवर्तन करता है और 21 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा के ऊपर होता हैं जिस कारण से इस दिन रात सबसे बड़ी और दिन सबसे छोटा होता हैं और 22 दिसंबर से सूर्य उत्तर की ओर रुख करता हैं किन्तु अभी तक ये धनु राशि में ही रहता है और धीरे-2 मकर राशि में प्रवेश प्रारंभ करता है और 14 जनवर को यह मकर राशि में पूर्ण प्रवेश ले लेता हैं और उत्तर की ओर पूर्ण रूप से गति करना प्रारम्भ क्र देता है और उसके बाद से ही सर्दी में कमी होने होने लगती है और दिन बड़े एवं राते छोटी होने लगती है।

अब इसी प्रकार सूर्य अपनी गति को जारी रखता हुआ उत्तरा की ओर बढ़ता जाता हैं और 20 से 21 मार्च के आस-पास यह भूमध्य रेखा पर पहुंच जाता हैं और इसी समय रात और दिन बराबर घंटो के होते है अर्थात 20 या 21 मार्च को दिन और रात दोनों 12 घंटो के होते हैं और इसके बाद सूर्य भूमध्य रेखा के ऊपर गति करने लगता है जिससे दिन ओर बड़े होने लगते है और 21 जून को यह कर्क रेखा में पहुंच जाता हैं और इसी 21 जून को दिन सबसे बड़ा होता हैं और रात सबसे छोटी है। अब 22 जून से सूर्य फिर से कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर अपनी गति प्रारम्भ कर देता है और दक्षिणायन हो जाता हैं।

तो इस प्रकार सूर्य 22 दिसंबर से उत्तरायण होना आरंभ करता है और 14 जनवरी को उत्तरायण हो जाता है जिसके बाद से 21 जून तक उत्तर में गति करता है जिसे उत्तरायण कहते है।

दक्षिणायन

जब सूर्य कर्क रेखा (Tropic of Cancer) से मकर रेखा (Tropic of Capricorn) की ओर बढ़ता है, तो इसे दक्षिणायन कहते है। दक्षिणायन 22 जून से शुरू होता हैं और 21 दिसंबर तक होता हैं। जब सूर्य कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर आ रहा होता है तब 23 सितंबर को यह भूमध्य रेखा पर होता है और इस दिन भी 20 मार्च के दिन के जैसे दिन और रात एक समान मतलब 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात होती है। इसके बाद से सूर्य तेजी से दक्षिण की ओर या दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ने लगता हैं जिससे उत्तरी गोलार्ध में दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं और सर्दियों का आगमन हो जाता हैं।

जब सूर्य विषुवत रेखा (Equator) के ठीक ऊपर स्थित होता है तो इसे विषुव कहते हैं ये साल में दो बार होता है एक वसंत विषुव जो 20 मार्च को होता है और एक शरद विषुव जो 23 सितंबर को होता है। और इस समय दिन और रात बराबर होते हैं अर्थात दिन और रात दोनो 12 घंटे के होते हैं।


उत्तरायण और दक्षिणायन प्रकृति और मानव जीवन के बीच सामंजस्य का प्रतीक हैं। इन अवधियों का समझना हमें न केवल मौसम, बल्कि हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन को बेहतर तरीके से अपनाने में मदद करता है। यह दर्शाता है कि कैसे भारतीय परंपराएं प्रकृति के विज्ञान के साथ गहराई से जुड़ी हुई हैं।

  • उत्तरायण को शुभ और प्रगति का समय माना जाता है। इस दौरान मांगलिक कार्य किए जाते हैं।
  • उत्तरायण मनुष्य के बाहरी विकास का प्रतीक है, जहां गतिविधियां बढ़ती हैं।
  • दक्षिणायन को आत्मचिंतन, आंतरिक शांति और साधना का समय माना जाता है। यह पितरों के स्मरण का अवसर है।