सप्तऋषि कौन हैं?
सप्तऋषि जिसके नाम से ही पता लग जाता है कि ये सात ऋषियों का समूह हो सकता हैं किन्तु ये कौन हैं और कैसे इनकी उत्तपत्ति हुई, ये जानने की जिज्ञासा हर किसी को होगी। इसी बात को ध्यान में रखकर और शोध करने के बाद ही सप्तऋषियों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। यहाँ आपको सप्तऋषियों के बारे में पूर्ण जानकारी मिलेगी। तो चलिए जानते हैं इनके बारे में।
सप्तर्षि (सप्त + ऋषि) सात ऋषिओं के समूह को कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्तऋषियों की उत्त्पत्ति ब्रम्हाजी के मस्तिष्क से होती हैं और भगवान शिवजी के द्वारा इनको शिक्षा दी जाती हैं, जिसके बाद ये धर्म और मर्यादा की रक्षा और इस शृष्टि का संतुलन बनाए रखने के काम में लग जाते हैं।
वेद और पुराणों के अनुसार सप्तऋषि हर एक मन्वन्तर में बदल जाते हैं अर्थात एक मन्वन्तर में एक इंद्रा, सप्तऋषि और कुछ अन्य देवता होते हैं जो शृष्टि के संतुलन में अपने-2 कार्य करते है। तो इसके अनुसार इस समय 7वां मन्वन्तर (वैवस्वत मनु) चल रहा हैं और विष्णु पुराण के अनुसार इसके सप्तऋषि इस प्रकार हैं।
वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।
विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।
अर्थात
वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
इस प्रकार इससे पहले जो 6 मन्वंतर बीत चुके हैं उनमें सप्तऋषि अलग थे और जो आने वाले मन्वंतर हैं उनमें कुछ ओर होंगे, इसी प्रकार ये क्रम चलता रहता हैं।
तो चलिए अब इन ऋषियों के बारे में थोड़ा जान लेते हैं।
- ऋषि वसिष्ठ वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे, इनका उल्लेख वेदों, पुराणों, और रामायण जैसे महाकाव्यों में मिलता है।
- ऋषि वसिष्ठ ब्रम्हा के मानस पुत्र थे और ये त्रिकालदर्शी ऋषि थे।
- ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु थे और उन्होंने भगवान राम और उनके भाइयों को शिक्षा दी थी। इनके ज्ञान और धैर्य का बहुत सम्मान किया जाता था।
- वशिष्ठ ने योग और ध्यान के कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। उन्होंने "योग वशिष्ठ" नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने ज्ञान, ध्यान और मोक्ष के विषय में विस्तार से बताया है।
- योग वशिष्ठ एक अद्वितीय ग्रंथ है जो वशिष्ठ और भगवान राम के संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें ज्ञान योग, भक्ति योग, और कर्म योग के गूढ़ तत्वों का विवेचन किया गया है। इस ग्रंथ का अध्ययन अध्यात्म की ओर अग्रसर करने वाला माना जाता है।
- ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के पुत्र थे। मान्यता अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी।
- महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार इनकी सत्रह पत्नियाँ, भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण के अनुसार तेरह पत्नियां और मत्स्य पुराण के अनुसार नौ पत्नियाँ थी। जिनसे देवता, दैत्य, दानव, यक्ष, गंधर्व, रक्षा, नाग इन सभी जीवधारियों की उत्पत्ति हुई और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए।
- इस प्रकार ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियाँ थी और ये सभी प्रजापति दक्ष की पुत्रियां थी।
- कश्यप को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। पुराणों अनुसार हम सभी उन्हीं की संतानें हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष समस्त देव, दानव एवं मानव ऋषि कश्यप की आज्ञा का पालन करते थे। कश्यप ने बहुत से स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी।
- ऋषि अत्रि ब्रह्मा के मानस पुत्रों और सप्तर्षियों में से हैं । वे अपने ज्ञान, तपस्या और धार्मिकता के लिए प्रसिद्ध थे। वेदों में उनका विशेष स्थान है और उन्हें अनेक मंत्रों का रचयिता माना जाता है। इन्हें अग्नि, इन्द्र और सनातन संस्कृति के अन्य वैदिक देवताओं के लिए बड़ी संख्या में भजन लिखने का श्रेय दिया जाता है। भागवत पुराण में अत्रि ऋषि की तपस्या और उनके द्वारा प्राप्त वरदानों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
- अत्रि ऋषि ने ऋग्वेद के अत्रि सूक्त (जिसमें ब्रह्मांड, देवताओं, और मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है) और अग्नि सूक्त (अग्नि देवता की स्तुति करते हुए मंत्रों की रचना की है, जो यज्ञ और हवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं) की रचना की हैं।
- अत्रि ऋषि का विवाह कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसूया से हुआ था जो अपनी पवित्रता और पतिव्रत धर्म के लिए विशेष रूप से जानी जाती हैं। सती अनुसुईया सोलह सतियों में से एक थीं। ऋषि अत्रि और माता अनुसुईया के तीन चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा पुत्र हुए जिन्हे ब्रम्हा, विष्णु और महेश का अवतार माना जाता हैं।
- भगवान राम और माता सीता अपने वनवास के समय इनके आश्रम (चित्रकूट) आए थे। जहां माता अनुसुईया ने माता सीता को पवित्रता का उपदेश दिया था।
- ऋषि जमदग्नि भृगु ऋषि के पुत्र थे और कश्यप गोत्र में उत्पन्न हुए थे। उनकी माता का नाम सत्यवती था, जो कि एक राजकुमारी थीं। जमदग्नि ने अत्यधिक तपस्या और साधना से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया था।
- जमदग्नि की पत्नी रेणुका थीं, जो एक अत्यंत पवित्र और धर्मनिष्ठ महिला थीं। उनके पाँच पुत्र थे, जिनमें परशुराम सबसे प्रसिद्ध थे। अन्य पुत्रों के नाम रुक्मवान, सुषेण, वसुमान, और वसु थे।
- भागवत पुराण में जमदग्नि की तपस्या, रेणुका की कथा, और परशुराम के कार्यों का विस्तृत वर्णन है। विष्णु पुराण में भी जमदग्नि की महत्ता और उनके जीवन की घटनाओं का वर्णन है।
- ऋषि गौतम का जन्म अंगिरस ऋषि के पुत्र के रूप में हुआ था और वे अपने तपस्या और ज्ञान के लिए जाने जाते थे। उनका परिवार वेदों और शास्त्रों का पालन करने वाला था, जिससे उन्हें बचपन से ही धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा मिली।
- गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या थीं, जो अपनी पवित्रता और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध थीं। उनकी एक पुत्री थी, जिनका नाम अंजना था, जो हनुमान जी की माता बनीं।
- अहिल्या की कथा हिंदू धर्म में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह कथा बताती है कि कैसे इंद्र ने छलपूर्वक गौतम ऋषि का रूप धारण करके अहिल्या के साथ संबंध बनाए। जब गौतम ऋषि को यह पता चला, तो उन्होंने अहिल्या को शाप दे दिया कि वे पत्थर की मूर्ति बन जाएँगी। बाद में, भगवान राम ने उनके तपस्या के फलस्वरूप उन्हें इस शाप से मुक्त किया।
- गौतम ऋषि ने धर्मशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रंथ 'गौतम धर्मसूत्र' की रचना की। यह धर्मसूत्र विभिन्न धार्मिक, सामाजिक, और नैतिक नियमों का संग्रह है और हिंदू धर्म में इसे अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इस ग्रंथ में विभिन्न वर्णों और आश्रमों के कर्तव्यों, यज्ञों, और सामाजिक नियमों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
- विश्वामित्र का जन्म एक क्षत्रिय कुल में हुआ था। उनका मूल नाम राजा कौशिक था और वे कन्नौज के राजा गाधि के पुत्र थे। प्रारंभ में वे एक शक्तिशाली और प्रभावशाली राजा थे।
- एक बार, विश्वामित्र अपने सेना के साथ वसिष्ठ ऋषि के आश्रम में गए और वहाँ उन्होंने ऋषि की कामधेनु गाय को देखा, जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम थी। विश्वामित्र ने कामधेनु को प्राप्त करने का प्रयास किया, और दोनो के मध्य भीषण युद्ध हुआ और वसिष्ठ ऋषि ने अपनी तपस्या के बल पर विश्वामित्र को हरा दिया। इस घटना ने विश्वामित्र को ब्रह्मर्षि बनने के संकल्प से प्रेरित किया। अपनी सेना तथा पुत्रों के नष्ट हो जाने से विश्वामित्र बड़े दुःखी हुये। और तब वे तपस्या करने के लिये हिमालय की कन्दराओं में चले गये और वहां कठोर तपस्या की और विभिन्न देवताओं को प्रसन्न किया। उनकी तपस्या के फलस्वरूप, उन्हें महर्षि और फिर ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त हुआ। इस प्रक्रिया में उन्होंने अनेक यज्ञ किए और अपने अंदर की सभी क्षत्रिय विशेषताओं को त्याग कर ऋषित्व प्राप्त किया।
- विश्वामित्र को गायत्री मंत्र के रचयिता के रूप में जाना जाता है, जो वेदों का एक महत्वपूर्ण मंत्र है।
- रामायण में विश्वामित्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे राम और लक्ष्मण को अपने साथ आश्रम में ले गए और उन्हें विभिन्न दिव्यास्त्रों का ज्ञान दिया। उन्होंने राम और लक्ष्मण को ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों से रक्षा करने की शिक्षा दी और सिद्धाश्रम में अपने यज्ञ को संपन्न किया। इसके बाद उन्होंने राम और लक्ष्मण को मिथिला ले जाकर जनक के यहाँ सीता के स्वयंवर में भाग लेने का अवसर प्रदान किया।
- विश्वामित्र का उल्लेख विभिन्न पुराणों और वेदों में मिलता है। उनके द्वारा रचित मंत्र और सूक्त वेदों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके जीवन की कथाएँ विभिन्न ग्रंथों में विस्तार से वर्णित हैं।
- ऋषि भारद्वाज का जन्म ब्रह्मा के वंश में हुआ था। वे बृहस्पति और ममता के पुत्र थे और उनके नाम पर भारद्वाज गोत्र की स्थापना हुई। भारद्वाज सप्तर्षियों में से एक हैं और उन्हें महान तपस्वियों में गिना जाता है।
- चरक संहिता के अनुसार, भरद्वाज ने इंद्र से आयुर्वेद और व्याकरण का ज्ञान पाया था। उन्हें ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इंद्र के बाद व्याकरण का सर्वोच्च चौथा प्रवक्ता माना गया है। महर्षि भृगु से उन्हें धर्मशास्त्र का उपदेश मिला था।
- ऋषि भारद्वाज को प्रयाग का प्रथम वासी माना जाता है अर्थात ऋषि भारद्वाज ने ही प्रयाग को बसाया था। प्रयाग में ही उन्होंने घरती के सबसे बड़े गुरूकुल(विश्वविद्यालय) की स्थापना की थी और हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे। वे शिक्षाशास्त्री, राजतंत्र मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, शस्त्रविद्या विशारद, आयुर्वेेद विशारद,विधि वेत्ता, अभियाँत्रिकी विशेषज्ञ, विज्ञानवेत्ता और मँत्र द्रष्टा थे।ऋग्वेेद के छठे मंडल के द्रष्टाऋषि भारद्वाज ही हैं। इस मंडल में 765 मंत्र हैं। अथर्ववेद में भी ऋषि भारद्वाज के 23 मंत्र हैं
- भगवान राम अपने वनवास के समय सबसे पहले इन्हीं के आश्रम में आए थे और इनके ही परामर्श से चित्रकूट में वास किया था।
- आयुर्वेद सँहिता, भारद्वाज स्मृति, भारद्वाज सँहिता, राजशास्त्र, यँत्र-सर्वस्व(विमान अभियाँत्रिकी) आदि ऋषि भारद्वाज के रचित प्रमुख ग्रँथ हैं।
इस प्रकार हमारे धार्मिक ग्रंथो में सप्तऋषियों का वर्णन देखने को मिलता हैं और इनके सम्मान में आकाश में दिखने वाले सात तारों के समूह को इन्ही के नाम पर सप्तर्षि मंडल कहा जाता है। इसे फाल्गुन-चैत महीने से श्रावण-भाद्र महीने तक आकाश में सात तारों के समूह के रूप में देखा जा सकता है। इसमें चार तारे चौकोर तथा तीन तिरछी रेखा में रहते हैं। इन तारों को काल्पनिक रेखाओं से मिलाने पर एक प्रश्न चिन्ह का आकार प्रतीत होता है।
अंग्रेज़ी में सप्तर्षि तारामंडल को "अरसा मेजर" (Ursa Major), "ग्रेट बेयर" (Great Bear) या "बिग बेयर" (Big Bear) कहा जाता है - इन सब का अर्थ "बड़ा भालू" होता है। इसे अमेरिका और कनाडा में "बिग डिप्पर" (यानि बड़ा चमचा) भी कहा जाता है। चीन में यह "पे-तेऊ" कहलाता है।