Vaidikalaya

पंचतंत्र



पंचतंत्र भारतीय साहित्य की एक अमूल्य धरोहर है, जिसने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के साहित्य और नैतिक शिक्षा को प्रभावित किया है। इसकी कहानियाँ सदियों से लोगों को जीवन के व्यावहारिक ज्ञान, चतुराई और नैतिकता सिखा रही हैं। यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति की बुद्धिमत्ता और गहरी समझ का प्रतीक है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया गया है।

पंचतंत्र की रचना महान संस्कृत विद्वान पंडित विष्णु शर्मा ने लगभग 200 ईसा पूर्व में की थी। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखा गया था और इसका उद्देश्य था — उस समय राजकुमारों को व्यवहारिक बुद्धि, नीति, और जीवन का व्यावहारिक ज्ञान सिखाना था। 

राजकुमारों को बुद्धिमत्ता, नीति और व्यवहारिक शिक्षा देने के उद्देश्य से पंडित विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की कहानियाँ पशु-पक्षियों के पात्रों के माध्यम से रचीं। ये कहानियाँ न केवल रोचक होती हैं, बल्कि उनमें छिपे संदेश जीवन की कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की प्रेरणा देते हैं। पंचतंत्र की विशेषता यह है कि इसमें शेर, सियार, बंदर, कछुआ, मगरमच्छ जैसे जानवरों के माध्यम से मित्रता, विश्वासघात, चालाकी, नीति और नैतिकता की शिक्षा दी गई है। पंडित विष्णु शर्मा ने जानवरों की कल्पनाओं का उपयोग कर ऐसी कहानियाँ लिखीं जो बालकों के साथ-साथ बड़ों को भी जीवन का व्यावहारिक ज्ञान सिखा सकें। इन कहानियों के अंत में जो नीति वाक्य होते हैं, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। वास्तव में, पंचतंत्र केवल एक कहानी संग्रह नहीं, बल्कि एक ऐसा दर्पण है जो समाज और व्यक्ति के व्यवहार को समझने में मदद करता है।


पंचतंत्र की कथा

दक्षिण देश के एक प्रान्त में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। वहाँ एक महादानी , प्रतापी राजा अमरशक्ति रहता था। उसके तीन पुत्र थे बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनन्तशक्ति। राजा के पास धन की कोई कमी नहीं थी, रत्नों की अपार राशि थी किन्तु उसके पुत्र बिल्कुल जड़बुद्धि थे। तीनों पुत्रों के होते हुए भी वह सुखी न था। तीनों अविनीत, उच्छृंखल और मुर्ख थे।

राजा ने अपने मंत्रियों को बुलाकर पुत्रों की शिक्षा के सम्बन्ध में अपनी चिन्ता प्रकट की। राजा के राज्य में उस समय  पाँच सौ वृत्ति-भोगी शिक्षक थे. उनमें से एक भी ऐसा नहीं था जो राजपुत्रों को उचित शिक्षा दे सकता। अन्त में राजा की चिन्ता को दूर करने के लिए सुमति नाम के मंत्री ने सकलशास्त्र पारंगत आचार्य विष्णुशर्मा को बुलाकर राजपुत्रों का शिक्षक नियुक्त करने की सलाह दी। 

राजा ने विष्णुशर्मा को बुलाकर कहा कि यदि आप मेरे इन पुत्रों को शीघ्र ही राजनीतिज्ञ बना देंगे तो मैं आपको एक सौ गाँव इनाम में दूँगा। विष्णुशर्मा ने हँसकर उत्तर दिया-महाराज! मैं अपनी विद्या को बेचता नहीं हूँ। इनाम की मुझे इच्छा नहीं है। आपने आदर से बुलाकर आदेश दिया है, इसलिए मैं छह महीने में ही आपके पुत्रों को राजनीतिज्ञ बना दूंगा। यदि मैं इसमें सफल न हुआ तो अपना नाम बदल डालूंगा। 

आचार्य का आश्वासन पाकर राजा ने अपने पुत्रों का शिक्षण-भार उनपर डाल दिया और निश्चिंत हो गया। विष्णुशर्मा ने उनकी शिक्षा के लिए अनेक कथाएँ बनाईं। उन कथाओं के द्वारा उन्हें राजनीति और व्यवहार-नीति की शिक्षा दी। उन कथाओं के संग्रह का नाम ही 'पंचतंत्र' है। पाँच प्रकरणों में उनका विभाजन होने से उसे 'पंचतंत्र' नाम दिया गया है। 

राजपुत्र इन कथाओं को सुनकर छह महीने में ही पूरे राजनीतिज्ञ बन गए। उन पाँच प्रकरणों के नाम हैं :

1. मित्रभेद: मित्रता में दरार और उसके कारण

2. मित्रसम्प्राप्ति: सच्चे मित्रों की पहचान

3. काकोलूकीयम: राजनीति, छल और सुरक्षा की नीति

4. लब्धप्रणाशम: प्राप्त वस्तु के नष्ट होने से जुड़ी सीख

5. अपरीक्षितकारक: बिना सोचे-समझे किए गए कार्यों के दुष्परिणाम

विष्णु शर्मा के द्वारा लिखी ये रोचक कहानियों की पुस्तक क्रमानुसार आप वैदिकालय पर पढ़ सकते हैं जिसमे हमने कहनियों से सम्बंधित चित्रों का उपयोग भी किया हैं। यहाँ से कहानियाँ पढ़ कर आप अपने बच्चो को सुना सकते है और उनके ज्ञान को बढ़ा सकते है।