Vaidikalaya

शिक्षा का पात्र


उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने।

अर्थात

अर्थ: जिस-तिसको उपदेश देना उचित नहीं।


शिक्षा का पात्र जिसका सीधा अर्थ है- शिक्षा प्राप्त करने वाला व्यक्ति या विद्यार्थी अर्थात ज्ञान उसी को दो जो उसके पात्र है सभी को नहीं। 

यह पंचतंत्र के प्रथम तंत्र की पंद्रहवीं कहानी है, जब करकट - दमनक पर क्रोधित हो रहा होता है और उससे कहता है की तुझे ज्ञान देना बेकार है तू उसके पात्र नहीं है और उसे सूचीमुख चिड़िया की कहानी सुनाता है और कहानी समाप्त होने पर उससे बोलता है कि जिस-तिस को उपदेश नहीं देना चाहिए जो उपदेश के पात्र है उसी को देना चाहिए नहीं तो उसका उसका हाल उस चिड़िया के जैसा होता है जिसने बंदर को उपदेश दिया और उसने उसका घोंसला ही तोड़ दिया तब दमनक कहता है कि ये कौनसी कहानी है मुझे सुनाओ तब करकट उसे ये कहानी सुनाता है जो इस प्रकार है-


किसी जंगल के एक घने वृक्ष की शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का एक जोड़ा रहता था। अपने घोंसले में दोनों बड़े सुख से रहते थे। सर्दियों का मौसम था। उस समय एक बन्दर बर्फीली हवा और बरसात में ठिठुरता हुआ उस वृक्ष की शाखा पर आ बैठा। जाड़े के मारे उसके दाँत कटकटा रहे थे। उसे देख चिड़िया ने कहा-अरे, तुम कौन हो? देखने में तो तुम्हारा चेहरा आदमियों का सा है; हाथ-पैर भी हैं तुम्हारे। फिर भी तुम यहाँ बैठे हो, घर बनाकर क्यों नहीं रहते?

बन्दर बोला-अरी, तुझसे चुप नहीं रह जाता? तू अपना काम कर, मेरा उपहास क्यों करती है?

चिड़िया फिर भी कुछ कहती गई! वह चिढ़ गया। क्रोध में आकर उसने चिड़िया के उस घोंसले को तोड़-फोड़ डाला।

करटक ने कहा- इसीलिए मैं कहता था। जिस-तिसको उपदेश नहीं देना चाहिए। किन्तु तुझपर इसका प्रभाव नहीं पड़ा। तुझे शिक्षा देना भी व्यर्थ है। बुद्धिमान को दी हुई शिक्षा का ही फल होता है। मूर्ख को दी हुई शिक्षा का फल कई बार उलटा निकल आता है, जिस तरह पापबुद्धि नाम के मूर्ख पुत्र ने विद्वता के जोश में पिता की हत्या कर दी थी।

दमनक ने पूछा- कैसे?

करटक ने तब धर्मबुद्धि- पापबुद्धि नाम के दो मित्र की कथा सुनाई: