जैसे को तैसा
तुलां लोहसहस्रस्य यत्र खादन्ति मूषिकाः।
राजंस्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं नात्र संशयः ॥
अर्थ: जहाँ मन-भर लोहे की तराजू को चूहे खा जाएँ, वहाँ की चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है।।
जैसे को तैसा जिसका अर्थ होता है- कि जो व्यक्ति आपके साथ जैसा व्यवहार करता है उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। यह एक तरह से बदले की भावना या समान न्याय की धारणा को दर्शाता है।
यह पंचतंत्र के प्रथम तंत्र की अठारहवीं कहानी है, दमनक ने संजीवक और पिंगलक के बीच युद्ध करा दिया और इस बात से करकट गुस्सा कर रहा है क्योकि उसे डर है कि इस युद्ध में कही पिंगलक ना मारा जाए और दमनक ने जो षड़यंत्र रचा है वो उसके ऊपर ही उल्टा पड़ जाये। इसीलिए करकट उसको अधर्मी और राज्य का दुश्मन है ऐसा बोलता है और कहता है कि आज से तू मेरा मित्र नहीं, यहाँ से चला जा और कभी मेरे पास ना आना क्योंकि जहाँ तुझ जैसे अनर्थी होंगे वहाँ का विनाश निश्चित है क्योंकि जहाँ चूहे मन-भर की तराजू को खा जाएँ वहाँ यह भी सम्भव है कि चील बच्चे को उठाकर ले जाए। तब दमनक करकट से इसका मतलब पूछता है तब करकट उसे लोहे की तराजू की एक कहानी सुनाता हैं जो इस प्रकार है-
एक स्थान पर जीर्णधन नाम का बनिये का लड़का रहता था। धन की खोज में उसने परदेश जाने का विचार किया। उसके घर में विशेष सम्पत्ति तो थी नहीं, केवल एक मन-भर लोहे की तराजू थी। उसे एक महाजन के पास धरोहर रख कर वह विदेश चला गया। विदेश से वापस आने के बाद उसने महाजन से अपनी धरोहर वापसी माँगी।
महाजन ने कहा- वह लोहे की तराजू तो चूहों ने खा ली।
बनिया का लड़का समझ गया कि वह उसे तराजू देना नहीं चाहता। किन्तु अब उपाय कोई नहीं था। कुछ देर सोचकर उसने कहा- कोई चिन्ता नहीं। चूहों ने खा डाली तो चूहों का दोष है, तुम्हारा नहीं। तुम उसकी चिन्ता न करो।
थोड़ी देर बाद उस लड़के ने महाजन से कहा- मित्र! नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो, वह भी नहा आएगा।
महाजन बनिये की सज्जनता से बहुत प्रभावित था, इसलिए उसने तत्काल अपने पुत्र को उसके साथ नदी-स्नान के लिए भेज दिया
बनिये ने महाजन के पुत्र को वहाँ से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में बंद कर दिया। गुफा के द्वार पर बड़ी-सी शिला रख दी, जिससे वह निकलकर भाग न पाए। फिर जब वह महाजन के घर आया तो महाजन ने पूछा-मेरा लड़का भी तो तेरे साथ स्नान के लिए गया था, वह कहाँ है?
बनिये ने कहा- उसे चील उठाकर ले गई।
महाजन- यह कैसे हो सकता है? कभी चील भी इतने बड़े बच्चे को उठा कर ले जा सकती है?
बनिया- भले आदमी! यदि चील बच्चे को उठाकर नहीं ले जा सकती, तो चूहे भी मन-भर भारी तराजू को नहीं खा सकते। तुझे बच्चा चाहिए तो तराजू निकालकर दे दे।
इसी तरह विवाद करते हुए दोनों राजमहल में पहुँचे। वहाँ न्यायाधिकारी के सामने महाजन ने अपनी दुःख-कथा सुनाते हुए कहा कि इस बनिये ने मेरा लड़का चुरा लिया है।
धर्माधिकारी ने बनिये से कहा- इसका लड़का इसे दे दो।
बनिया बोला- महाराज! उसे तो चील उठा ले गई है।
धर्माधिकारी- क्या कभी चील भी बच्चे को उठा ले जा सकती है?
बनिया- प्रभु! यदि मन-भर भारी तराजू को चूहे खा सकते हैं, तो चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है।
धर्माधिकारी के प्रश्न पर बनिए ने सब वृत्तान्त कह सुनाया।
कहानी कहने के बाद दमनक को करटक ने फिर कहा- तूने भी असम्भव को सम्भव बनाने का यत्न किया है। तूने स्वामी का हितचिंतक होके अहित कर दिया है। ऐसे हितचिंतक मूर्ख मित्रों की अपेक्षा अहितचिंतक बैरी अच्छे होते हैं। हितचिंतक मूर्ख बन्दर ने हितसम्पादन करते-करते राजा का खून ही कर दिया था।
दमनक ने पूछा- कैसे?
करटक ने तब बन्दर और राजा की यह कहानी सुनाई: