Vaidikalaya

भगवान विष्णु के अवतार



यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ।।

भावार्थ

जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ (अवतरित होता हूँ) |


जब-जब धर्म की हानि होती हैं और अधर्म की वृद्धि होती है तब-तब भगवान विष्णु अवतार लेते है और धर्म की रक्षा करते है। भगवान विष्णु को संसार का पालनकर्ता कहा जाता है और पालनकर्ता का यह कर्त्तव्य भी होता है कि वह संसार और अपने लोगो को सुरक्षित रखे। तो जब भी इस संसार में अधर्म की वृद्धि हुई, देवताओ और लोगो का रहना दुष्कर हो गया तो भगवान ने अवतार लिया और लोगो के कष्टों को दूर किया। तो अब प्रश्न आता है कि भगवान ने कब और कितने अवतार लिए, तो इसी का जबाब आपको इस लेख में मिल जायेगा। तो चलिए देखते है कि भगवन विष्णु ने कब और कितने अवतार लिए।

भगवान विष्णु के अवतारों को लेकर अलग-अलग धर्म ग्रंथों में अलग-अलग मत हैं - कुछ ग्रंथो में भगवान के 24 तो कही 10 अवतार देखने को मिलते है। श्रीमद्भागवत में अवतारों की मुख्यतः दो सूचियाँ हैं, दशावतार जो भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतार बताए गए हैं वे भगवान विष्णु का साक्षात् रूप हैं। अन्य चौदह अवतारों को लीलावतार बताया गया है। अत: दस अवतारों की पहली सूची और चौदह अवतारों की दूसरी सूची को मिलाकर 24 अवतार बनते हैं। किन्तु इन 24 अवतारों में 10 अवतारों को ही मुख्य अवतार माना जाता है।


भगवान विष्णु के दशावतार (10 मुख्य अवतार )

मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार.


1. मत्स्य अवतार

मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में से पहला अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक विशाल मछली का रूप धारण किया था। मत्स्य अवतार की कथा का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।

कथा

सतयुग के समय में एक राजा सत्यव्रत थे, जो बहुत धर्मपरायण और ईश्वर भक्त थे। एक दिन जब वे नदी में जल ग्रहण कर रहे थे, तो उनके हाथ में एक छोटी मछली आ गई। मछली ने उनसे कहा कि वह उसे नदी में न छोड़ें क्योंकि बड़ी मछलियाँ उसे खा सकती हैं। राजा सत्यव्रत ने मछली को एक पात्र में रख दिया, लेकिन वह मछली तेजी से बढ़ने लगी। अंततः मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसे समुद्र में छोड़ना पड़ा।

राजा सत्यव्रत को तब पता चला कि यह कोई साधारण मछली नहीं है, बल्कि भगवान विष्णु का अवतार है। भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि कुछ समय बाद एक प्रलय आने वाली है जिसमें पृथ्वी का सारा जीवन नष्ट हो जाएगा। उन्होंने राजा को एक विशाल नाव बनाने का निर्देश दिया और कहा कि वह इसमें ऋषियों, बीजों और अन्य जीव-जंतुओं को सुरक्षित रख लें।

प्रलय के समय जब पूरी पृथ्वी जल में डूब गई, तो भगवान विष्णु मत्स्य रूप में प्रकट हुए और उन्होंने उस नाव को अपनी पीठ पर बाँध लिया और उसे सुरक्षित स्थान पर ले गए। इस प्रकार भगवान विष्णु ने इस अवतार के माध्यम से जीवन की रक्षा की और पुनः सृष्टि की स्थापना की।


2. कूर्म अवतार

कूर्म अवतार भगवान विष्णु का दूसरा अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण किया था। कूर्म अवतार की कथा का वर्णन हिन्दू पुराणों, विशेषकर विष्णु पुराण और भागवत पुराण में मिलता है।

कथा

कूर्म अवतार की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है, जो देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए किया गया था। कथा के अनुसार, एक समय देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन करने का निर्णय लेते हैं ताकि अमृत की प्राप्ति हो सके, जो उन्हें अमरत्व प्रदान कर सके।

समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया। जब मंथन शुरू हुआ, तो मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा क्योंकि उसके लिए कोई आधार नहीं था। इस संकट को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया। उन्होंने एक विशाल कछुए का रूप लिया और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण कर लिया ताकि मंथन का कार्य सुचारू रूप से हो सके।


3. वराह अवतार

वराह अवतार भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक विशाल वराह (सूअर या जंगली सूअर) का रूप धारण किया। वराह अवतार की कथा का उल्लेख कई हिन्दू धर्मग्रंथों, विशेषकर विष्णु पुराण और भागवत पुराण में मिलता है।

कथा

वराह अवतार की कथा हिरण्याक्ष नामक दैत्य के अत्याचार से जुड़ी हुई है। हिरण्याक्ष एक बहुत ही बलशाली असुर था, जिसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था। इस वरदान के कारण उसे देवता, मानव, और अन्य सामान्य जीवों द्वारा मारे जाने का भय नहीं था। इस अहंकार में उसने तीनों लोकों पर आतंक मचा दिया और पृथ्वी (भूदेवी) को पाताल लोक (समुद्र) में डुबो दिया।

देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। इस पर भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और समुद्र में प्रवेश कर हिरण्याक्ष से युद्ध किया। यह युद्ध बहुत ही भीषण था और अंततः भगवान विष्णु ने अपने वराह रूप में हिरण्याक्ष का वध किया।

इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने वराह रूप में पृथ्वी को अपने दाँतों पर उठाया और उसे समुद्र से बाहर निकालकर पुनः सृष्टि में स्थापित किया।


4. नरसिंह अवतार

नरसिंह अवतार भगवान विष्णु का चौथा अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने आधे मनुष्य और आधे सिंह (शेर) का रूप धारण किया। नरसिंह अवतार की कथा अत्यंत प्रसिद्ध है और इसका वर्णन विभिन्न पुराणों, विशेषकर भागवत पुराण में मिलता है।

कथा

नरसिंह अवतार की कथा हिरण्यकशिपु नामक दैत्य और उसके पुत्र प्रह्लाद से जुड़ी हुई है। हिरण्यकशिपु एक शक्तिशाली असुर था जिसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था। इस वरदान के कारण उसे न दिन में, न रात में, न मानव, न पशु, न धरती पर, न आकाश में, न हथियारों से, न अस्त्र-शस्त्रों से, और न ही किसी भवन के अंदर या बाहर मारा जा सकता था। इस वरदान के कारण वह अत्यंत अहंकारी हो गया और उसने खुद को भगवान मान लिया।

हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रह्लाद अपने पिता के आदेशों का उल्लंघन करते हुए भगवान विष्णु की आराधना करता था। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को कई बार मारने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हमेशा बच जाता था।

अंततः हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि उसका भगवान कहाँ है? प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि भगवान हर जगह हैं, हर कण में हैं। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने एक खंभे की ओर इशारा करके पूछा, "क्या तुम्हारा भगवान इस खंभे में भी है?" प्रह्लाद ने कहा, "हाँ।"

तब हिरण्यकशिपु ने उस खंभे पर प्रहार किया, और उसी क्षण खंभे से भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का वध किया। उन्होंने इस अवतार में उसे संध्या के समय, एक द्वार की चौखट पर, अपनी जांघों पर बैठाकर, और अपने नाखूनों से मार डाला, जिससे ब्रह्मा जी के वरदान का उल्लंघन न हो।


5 . वामन अवतार

वामन अवतार भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक बौने ब्राह्मण (वामन) का रूप धारण किया था। वामन अवतार की कथा मुख्य रूप से भागवत पुराण, विष्णु पुराण, और अन्य हिन्दू ग्रंथों में वर्णित है। यह अवतार भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में लिया था।

कथा

वामन अवतार की कथा असुर राजा बलि से जुड़ी हुई है, जो प्रह्लाद के पौत्र और हिरण्यकशिपु के प्रपौत्र थे। बलि असुरों का राजा था, और वह बहुत ही पराक्रमी और धर्मशील था। उसने देवताओं को परास्त कर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। बलि अपने दान और धर्म के लिए भी प्रसिद्ध था, लेकिन उसके गर्व और अहंकार के कारण देवता उसके अत्याचार से पीड़ित हो गए।

देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे उनकी सहायता करें। भगवान विष्णु ने तब वामन अवतार धारण किया। उन्होंने एक छोटे बौने ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से भिक्षा मांगने का निश्चय किया।

एक दिन, जब बलि यज्ञ कर रहा था, वामन भगवान वहाँ पहुँचे। राजा बलि ने उनका स्वागत किया और उन्हें कुछ दान देने के लिए कहा। वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि की याचना की। बलि ने हँसते हुए उनकी याचना स्वीकार कर ली, क्योंकि वह तीन पग भूमि को बहुत कम मानता था।

इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप से अपना विराट रूप धारण किया। उन्होंने अपने पहले पग से स्वर्गलोक को नाप लिया, दूसरे पग से पृथ्वी को, और तीसरे पग के लिए जब कोई स्थान नहीं बचा, तो बलि ने अपना सिर भगवान के सामने झुका दिया। वामन भगवान ने तीसरा पग बलि के सिर पर रखा, जिससे बलि पाताल लोक में चला गया।

वामन अवतार की उपासना विशेष रूप से दक्षिण भारत और केरल में लोकप्रिय है, जहाँ ओणम का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व राजा बलि की स्मृति में मनाया जाता है, जो आज भी अपने राज्य और प्रजाजनों के प्रति प्रेम और देखभाल के प्रतीक माने जाते हैं। वामन अवतार भगवान विष्णु के न्याय, सत्य, और धर्म की स्थापना के रूप में देखा जाता है।


6. परशुराम अवतार

परशुराम अवतार भगवान विष्णु का छठा अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण योद्धा के रूप में अवतार लिया, जिनका नाम परशुराम था। परशुराम का अर्थ होता है "परशु" (कुल्हाड़ी) धारण करने वाला, और वे अपने साथ हमेशा एक परशु रखते थे। परशुराम अवतार का वर्णन महाभारत, रामायण, और पुराणों में मिलता है।

कथा

परशुराम का जन्म सतयुग के अंत और त्रेतायुग की शुरुआत के समय हुआ था। वे ब्राह्मण ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। परशुराम का वास्तविक नाम राम था, लेकिन उनके पराक्रम और परशु धारण करने के कारण उन्हें "परशुराम" कहा गया।

परशुराम अवतार की प्रमुख कथा कार्तवीर्य अर्जुन और उनके बीच के संघर्ष से जुड़ी है। कार्तवीर्य अर्जुन एक अत्याचारी राजा था, जिसने अपनी शक्ति और अहंकार में आकर परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि का अपमान किया और उनकी हत्या कर दी। इस घटना से क्रोधित होकर परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वे पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त करेंगे।

इसके बाद परशुराम ने अपनी परशु (कुल्हाड़ी) उठाई और 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया। परशुराम का यह कार्य अधर्म और अत्याचार के खिलाफ था, और उन्होंने क्षत्रिय वर्ग के उन राजाओं का नाश किया जो धर्म और न्याय से हट गए थे।


7. राम अवतार

राम अवतार भगवान विष्णु का सातवां अवतार है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में एक राजा के रूप में जन्म लिया, जिन्हें श्रीराम या मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। राम का जीवन और उनके कार्य "रामायण" महाकाव्य में विस्तृत रूप से वर्णित हैं, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने लिखा था। राम को धर्म, मर्यादा, और आदर्श जीवन का प्रतीक माना जाता है।


8. कृष्ण अवतार

कृष्ण अवतार भगवान विष्णु का आठवां अवतार है। श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर युग में हुआ और वे भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार माने जाते हैं। कृष्ण का जीवन और उनके कार्य महाभारत, भागवत पुराण, विष्णु पुराण, और अन्य हिन्दू धर्मग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। श्रीकृष्ण को प्रेम, भक्ति, नीति, और धर्म की स्थापना का प्रतीक माना जाता है।


9. बुद्ध अवतार

बुद्ध अवतार भगवान विष्णु का नौवां अवतार है। भगवान के इस अवतार को लेकर लोगो में मतभेद हैं क्योंकि इसमें भगवान बुद्ध जिनका प्रारंभिक नाम शाक्यसिंह था और गौतम बुद्ध जो बौद्ध धर्म के प्रवर्तक है को लेकर मतभेद हैं कुछ लोग भगवान बुद्ध को तो कुछ लोग गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मानते है। अगर बौद्ध धर्म के अनुयायियों की बात करे तो वो गौतम बुद्ध को किसी का अवतार नहीं मानते हैं वो उनको स्वतंत्र मानते हैं किन्तु सनातन धर्म को मानने वालो में कुछ गौतम को तो कुछ शाक्यसिंह को अवतार मानते है। निष्कर्ष यह हैं कि हम दोनों में किसी को भी अवतार माने दोनों ही महान थे, दोनों ने ही हमे सही रास्ते पर चलने का उपदेश दिया हैं।

भगवान बुद्ध का जन्म विहार के गया में हुआ था। इनकी माता का नाम अंजना था और पिता का नाम हेमसदन था। भगवान बुद्ध का बचपन का नाम शाक्यसिंह था, घोर तप करने के पश्ताप ये बुद्ध हो गए और इन्हे भगवान बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा।

गौतम बुद्ध का जन्म कपिलावस्तु के लुम्बिनी में हुआ था और इनके पिता का नाम शुद्धोदन तथा माता का नाम मायादेवी है।

कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब राक्षसों की शक्ति कमजोर पड़ने लगी तो वे राक्षसों के गुरु शंकराचार्य के पास गए और उनसे अपनी शक्ति बढ़ाने और देवताओ को जीतने का उपाय पूछने लगे तो शंकराचार्य ने उन्हें बताय कि यदि वे यज्ञ करे तो उनकी शक्ति बढ़ सकती है और वे देवताओ को जीत सकते है। तब राक्षसों ने ऐसा ही किया, वे यज्ञ करने लगे जिससे उनकी शक्ति बढ़ने लगी। किन्तु उन्होंने अपना आचरण नहीं बदला लोगो पर अत्याचार करना और देवताओ को परेशान करना काम नहीं किया।

राक्षसों की शक्ति को बढ़ता देख कर इन्द्र और अन्य देवता घबरा गए की उनकी सत्ता अब उनसे छीन न ली जाये, इसी सोच से घबरा कर वे भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा करने को कहा तब भगवान विष्णु ने अपना बुद्ध अवतार लिया और अपने ज्ञान से राक्षसों की बुद्धि को हर लिया

भगवान बुद्ध दैत्यों के पास गए और उनसे यज्ञ न करने की बात कही। बुद्ध जी ने कहा कि यज्ञ करना उचित नहीं है, इससे जीवों को नुकसान पहुंचता है। यज्ञ की आग में न जाने कितने जीव जल जाते हैं। मैं स्वयं जीव हिंसा से बचने के लिए रास्ते को साफ करते हुए चलता हूं। दैत्यों पर भगवान बुद्ध के उपदेशों का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने वेद आचारण व यज्ञ करना बंद कर दिया। ऐसा करने पर दैत्यों की शक्ति धीरे धीरे कम होने लगी। और देवताओ का उद्धार हुआ।


10. कल्कि अवतार

कल्कि अवतार भगवान विष्णु का दसवां और अंतिम अवतार है। यह अवतार भविष्य में कलियुग के अंत में होगा, जब अधर्म, अनैतिकता, और अन्याय अपने चरम पर होंगे। कल्कि अवतार का उद्देश्य अधर्म का नाश करना, संसार को पवित्र करना, और सत्य एवं धर्म की पुनः स्थापना करना है।

कथा

कल्कि अवतार की कथा विभिन्न पुराणों, विशेष रूप से विष्णु पुराण और भागवत पुराण में वर्णित है। कल्कि को "काल" का अवतार कहा जाता है, जो समय के विनाशकारी स्वरूप का प्रतीक है।

वर्तमान युग को "कलियुग" कहा जाता है, जो चार युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग) में से अंतिम है। कलियुग के अंत में जब अधर्म, अराजकता, और पाप अपने चरम पर होंगे, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेकर इस संसार में अवतार लेंगे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कल्कि का जन्म उत्तर प्रदेश के शंभल नामक गाँव में होगा। वे विष्णु यशा नामक ब्राह्मण के घर जन्म लेंगे। उनका रूप एक शक्तिशाली और दिव्य योद्धा का होगा, जो घोड़े पर सवार होकर, तलवार धारण किए हुए होंगे।

कल्कि अवतार का मुख्य उद्देश्य अधर्म, पाप, और अन्याय का नाश करना है। वे अपनी तलवार से पापियों का विनाश करेंगे और इस संसार को पवित्र करेंगे। यह अवतार अत्याचारी और पापी लोगों का अंत करेगा, और संसार को धर्म और सत्य के मार्ग पर ले जाएगा।

कल्कि के अवतार के बाद, कलियुग का अंत होगा और फिर से सत्ययुग की स्थापना होगी, जहाँ धर्म, सत्य, और न्याय का पालन होगा। यह एक नया युग होगा, जिसमें संसार में केवल शांति, समृद्धि, और सदाचार का वास होगा।


भगवान विष्णु के इन अवतारों को "दशावतार" के नाम से जाना जाता है। धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए विभिन्न युगों में लिए गए दिव्य रूप हैं। हर अवतार का उद्देश्य संसार में संतुलन बनाए रखना, अधर्म का नाश करना, और धर्म की स्थापना करना था। ये अवतार हमें यह संदेश देते हैं कि जब-जब संसार में अधर्म का बोलबाला होता है, तब-तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होकर धर्म की रक्षा करते हैं। इस प्रकार, दशावतार हमें यह भी सिखाते हैं कि सत्य और धर्म की सदैव विजय होती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विकट क्यों न हों।

भगवान विष्णु के 24 अवतार

1. सनकादि ऋषि (चार कुमार)
2. वराह,
3. नारद मुनि,
4. नर नारायण,
5. कपिल मुनि,
6. दत्तात्रेय,
7. सुयज्ञ,
8. पृथु,
9. ऋषभदेव,
10. मत्स्य,
11. कूर्म,
12. धन्वन्तरि,
13. मोहिनी,
14. नरसिंह,
15. वामन,
16. हयग्रीव,
17. गजेंद्रोधरा (श्रीहरि),
18. हंस,
19. परशुराम,
20. राम,
21. वेदव्यास,
22. कृष्ण,
23. बुद्ध,
24. कल्कि