Vaidikalaya

अध्याय 9 भारत और संसार 

भारत का बाहरी दुनिया से संपर्क

ईसा की सातवीं शताब्दी तक दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत का संबंध काफी बढ़ गया था। इस संबंध की शुरुआत व्यापारियों ने की थी जो अपना माल लेकर दक्षिण-पूर्व के द्वीपों में पहुंच चुके थे और बदले में वहां से मसाले की चीजें ले आते थे। इन‌ मसालों से भारतीय व्यापारी बहुत धनी हो गए, क्योंकि इन मसालों को पश्चिम एशिया के व्यापारियों को बेच देते थे। कुछ व्यापारी यह सोचकर कि दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने से उनका व्यापार अधिक चमक सकता है, वहां के बंदरगाहों में बस गए। उनमें से कुछ ने उन देशों की स्त्रियों से विवाह कर लिया। एक आख्यान के अनुसार, कौंडिन्य नाम का एक व्यक्ति कंबोडिया पहुंचकर वहां बस गया। उसने वहां की राजकुमारी से विवाह किया और उसे भारतीय रीति-रिवाज अपनाने के लिए राजी किया। कहां जाता है कि जल्दी ही वहां के कुलीन लोगों ने भी उस भारतीय रीति-रिवाज में से कुछ सीख लिए जिन्हें उनकी राजकुमारी ने अपनाया था।

धीरे-धीरे दक्षिण-पूर्व एशिया के लोगों ने भारतीय संस्कृति की कुछ बातें स्वीकार कर ली। परंतु उन्होंने अपनी परंपराओं को भी कायम रखा, जो अनेक बातों में भारतीय रीति-रिवाजों से मिलती-जुलती थी। भारतीय संस्कृति का प्रचार नगरों और दरबारी हलकों में अधिक हुआ। गांवों में जीवन का पुराना ढंग जारी रहा। भारतीय व्यापारी भारत के विभिन्न भागों- सौराष्ट्र, तमिलनाडु, उड़ीसा और बंगाल से आते थे। वे अपने साथ अपने प्रादेशिक रीति-रिवाज भी लाते थे। सौराष्ट्र से आने वाले प्रायः जैन होते थे। दक्षिण भारत से आने वाले शैव और वैष्णव होते थे। बंगाल से आने वालों में अधिक बौद्ध होते थे।

सबसे पहले भारत के संबंध बर्मा (सुवर्णभूमि), मलाया (सुवर्णद्वीप), कंबोडिया (कंबोज) और जावा (यवद्वीप) से स्थापित हुए। इन देशों में भारतीय मंदिरों की तरह मंदिरों का निर्माण हुआ जैसे, कंबोडिया में अंकोरवाट का मन्दिर। साथ ही, अनेक भारतीय प्रथाओं का प्रचलन हुआ। पुरोहित और राज-परिवार के लोगों ने संस्कृत सीखी और उन्हें रामायण, महाभारत तथा पुराणों की कथाओं की जानकारी मिली। एक नए प्रकार के साहित्य का विकास हुआ जिसमें भारतीय कथाएं स्थानीय आख्यानों के साथ घुल-मिल गई। जावा में जिस रामायण का पाठ होता है वह दोनों परंपराओं का अद्भुत मिश्रण है।

बाद के शताब्दियों में हिंदू धर्म का ह्रास हुआ और बौद्ध धर्म की लोकप्रियता बढ़ती गई कंबोडिया में अंकोरवाट के बयाॅन के भव्य बौद्ध मंदिर का निर्माण हुआ। जावा में बोरोवोदूर (बरबुडूर) आज भी उस क्षेत्र का सबसे भव्य बौद्ध मंदिर है। थाईलैंड और बर्मा ने भी बौद्ध धर्म अपना लिया।

इन देशों के मंदिरों में तथा मूर्तिकला व चित्रकला में और भारतीय बौद्ध मंदिरों में तथा कला में काफी साम्य है। फिर भी इनमें से प्रत्येक देश की संस्कृति में अपने विचार प्रस्तर-खंडों से बनाए गए इस मंदिर को संसार का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक माना जाता है। इस मंदिर में भारतीय महाकाव्य रामायण और महाभारत की घटनाओं के उभार-शिल्प बनाए गए हैं। कुछ विशेषताएं हैं जिन्हें उनके मंदिरों में और उनकी कलाओं में पहचाना जा सकता है। इन देशों की संस्कृति भारतीय संस्कृति की महज नकल नहीं थी।

व्यापारी और धर्म-प्रचारक एशिया के अन्य भागों में भी पहुंचे। इस काल में चीन के साथ भारत के गहरे संबंध स्थापित हुए। दोनों देशों में राजपूतों और धर्म-प्रचारकों का आदान-प्रदान हुआ। चीन और मध्य एशिया में अब बौद्ध धर्म काफी शक्तिशाली हो गया था। इसी प्रकार, व्यापारी और धर्म-प्रचारक ऊंचे हिमालय के आर-पार यात्रा करने लगे तो तिब्बत के साथ भी संबंध बढ़े। इस तरह व्यापार के जरिए भारत का अनेक स्थानों से संपर्क स्थापित हो गया। चीन और पश्चिम एशिया के बीच का व्यापारी-मार्ग मध्य एशिया से होकर जाता था। यह 'प्राचीन रेशम मार्ग' कहलाया, क्योंकि व्यापार की एक प्रमुख व वस्तु थी-रेशम। इस व्यापार में भारतीय व्यापारियों ने भी भाग लिया। वे पश्चिम के ईरान, अरेबिया और मिस्र देशों के बाजारों से परिचित थे। इसके भी और आगे पूर्वी अफ्रीका के समुद्र-तटीय नगरों तक भारतीय व्यापारी अपना माल ले जाते थे।

भारत में अरब लोग

ईसा की सातवीं शताब्दी से एशिया और उत्तरी अफ्रीका को एक नई गतिशील शक्ति का सामना करना पड़ा। अरेबिया में इस शक्ति का उदय हुआ और यह संसार के अनेक भागों में फैली। यहां शक्ति थी-इस्लाम। भारत भी इस्लाम के उत्थान और विस्तार से प्रभावित हुआ। भारत में सर्वप्रथम इस्लाम का आगमन अरबों के जरिए हुआ।

मोहम्मद पैगंबर

ईसा की छठी शताब्दी के अंत में अरब में एक बालक का जन्म हुआ, जिसने आगे जाकर न केवल अरब का बल्कि एशिया और अफ्रीका के अनेक भागों का इतिहास ही बदल डाला वह थे-मुहम्मद, एक नए धर्म इस्लाम के प्रवर्तक (पैगंबर) मुहम्मद को बचपन में ही दुख के दिन देखने पड़े थे। उनके जन्म के पहले ही उनके पिता चल बसे थे और जब वह छोटे थे तभी उनकी मां की मृत्यु हुई थी। इसलिए उनके एक चाचा ने उनका पालन-पोषण किया। 

उस समय अरेबिया व्यापार का केंद्र था जल और थल दोनों ही मार्गो से यहां व्यापारी वस्तुएं पहुंचती थी। यहां के दो महत्वपूर्ण नगर थे- मक्का और मदीना, जहां धनी व्यापारी रहते थे। उनके ऊंटों के बड़े-बड़े कारवां थे। धन केवल इन्हीं दो नगरों तक सीमित था। जो अरब लोग रेगिस्तान में रहते थे वह गरीब थे और उनका जीवन बड़ा कठोर था।

सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए ऊंटों के कारवांओं का इस्तेमाल होता था। ऐसे ही एक कारवां में काम करके मुहम्मद अपनी रोज़ी कमाते थे। मुहम्मद को सुनसान रेगिस्तान में लंबी यात्राएं करनी पड़ती थी सोचने के लिए पर्याप्त समय मिलता था। राजनीतिक दृष्टि से अरब लोगों कई कबीलों में बंटे हुए थे। ये कबीले हमेशा एक दूसरे से लड़ते रहते थे। मुहम्मद ने अपने लोगों के सामाजिक जीवन और धार्मिक विश्वासों के विषय में काफी विचार किया। उन्हें लगा कि यदि वे किसी तरह एकजुट होते हैं, तो वे आपस में लड़ना छोड़ देंगे और समृद्ध तथा शक्तिशाली हो जाएंगे।

नया धर्म

मुहम्मद अपने लोगों के धार्मिक विश्वासों से असंतुष्ट थे, क्योंकि वे अनेक देवताओं की पूजा करते थे। उनका विश्वास था (यहूदीयों और ईसाईयों का भी यही विश्वास था) कि ईश्वर एक है और पत्थरों तथा इसी तरह की अन्य चीजों की पूजा करना, जैसा कि उस समय के अरब लोग करते थे, व्यर्थ है। इन विचारों के बारे में वे अधिकाधिक गहराई से सोचने लगे। उन्होंने अनुभव किया कि ईश्वर ने उन्हें उसका संदेश लोगों तक पहुंचाने के लिए नहीं किया है।

मुहम्मद का कहना था ईश्वर जिसे अल्लाह कहते हैं, केवल एक है  और वे खुद उसके पैगंबर हैं जिन लोगों ने यह बात मान ली कि वे मुस्लिम कहलाए और उनका धर्म इस्लाम कहलाया। कुरान, जिसे सभी मुस्लिम ईश्वर का कथन मानते हैं, बताता है कि जब आवश्यकता पड़ती है तब ईश्वर हमेशा अपने एक पैगंबर को लोगों के पास भेजता है। इनमें से केवल कुछ पैगंबरों के नाम ही कुरान में दिए हुए हैं। मुहम्मद ने कुछ पुराने पैगंबरों को स्वीकार किया है; जैसे, यहूदी पैगंबर अब्राहम तथा मूसा (मोजेज) को और ईसा मसीह को।

मुहम्मद का अपने अनुयायियों से कहना था कि वे दिन में पांच बार नमाज पढ़ें, रोजे़ (उपवास) रखे, मक्का की तीर्थयात्रा करें और यथाशक्ति दान दे। उन्होंने आचरण के बारे में कुछ भी नियम  बनाए। उन्होंने इस बात पर भी बल डाला कि ईश्वर की निगाहों में सब बराबर हैं और मुसलमानों को जातिप्रथा या वर्गभेद में विश्वास नहीं करना चाहिए।

सबसे पहले उन्होंने अपने परिवार अपनी पत्नी और अपने संबंधियों को मुसलमान बनाया। परन्तु नए धर्म को गुप्त रखना आवश्यक था, क्योंकि अरब लोगों को यदि चलता तो वे मुहम्मद से ख़फा़ हो जाते।

मक्का के लोगों को जब नए धर्म के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने उन को जान से मार डालने की धमकी दी। इस लिए वे मदीना चले गए। यह 622 ई० की घटना है और मुस्लिम संवत् (हिजरी) उसी वर्ष से आरंभ होता है। अंत में मक्का के लोग भी नए धर्म में दीक्षित हुए।

इस्लाम का प्रसार

मुहम्मद की 632 ई० में मृत्यु हुई। उसके बाद इस्लाम का तेजी से प्रसार हुआ। एक शताब्दी के अंदर ही अरब सेनाओं ने एक बड़े भूभाग को जीत लिया। उनकी विजय-पताका पश्चिम एशिया से उत्तरी अफ्रीका के उस पार स्पेन तक फहराने लगी। इस क्षेत्र पर ख़लीफा का राज्य स्थापित किया गया। पैगंबर के उत्तराधिकारी को ख़लीफा कहते थे और वहीं इस समूचे क्षेत्र का शासक होता था।

अरबों का राज्य बहुत विस्तृत था। अरब अब पश्चिम एशिया तथा यूनान की प्राचीन जातियों व संस्कृतियों और यूरोप की संस्कृतियों के बीच सेतु बन गए। भारत भी अब इस्लाम के प्रभाव में आया। अरब ही इस्लाम को भारत में लाए थे।

भारत में अरब

712 ई० में अरबों ने सिन्ध जीत लिया और उन्होंने पश्चिम भारत पर चढ़ाई करने की धमकी दी, परंतु आज राजस्थान के नाम से जाने जाने वाले प्रदेश के स्थानीय शासकों ने उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया। फिर भी सिन्ध पर उनका राजनीतिक शासन रहा। सबसे पहले भारत के इसी भाग में इस्लाम एक महत्वपूर्ण धर्म बन गया। परंतु अरब लोग सिर्फ विजेता बनकर ही यहां नहीं आए। भारत के पश्चिमी तट पर पश्चिम एशिया से आए अरब व्यापारियों की कई बस्तियां स्थापित हुई थी। यहां वे स्थानीय लोगों के साथ मिल-जुल कर रहते थे, उन्हीं से शादी करते और एशिया के अन्य प्रदेशों के साथ होने वाले भारतीय व्यापार में हिस्सा लेते थे।

निष्कर्ष

इस प्रकार ईशा की आठवीं सदी में भारतीय सभ्यता फल-फूल रही थी और भारत की जनता सुखी थी। भारतीय संस्कृति केवल भारत तक ही सीमित नहीं थी। दूसरे देशों के लोगों को भी इसकी जानकारी थी। कभी-कभी जब संबंध गहरे हो गए तो दूसरे लोगों ने भी भारतीय संस्कृति में अपना योगदान दिया। अरबों के साथ भारत में न केवल इस्लाम का आगमन हुआ, बल्कि नए सांस्कृतिक प्रभाव भी आए जिनका आगे की सदियों में विकास हुआ। इस प्रकार, एक ओर भारत अपनी संस्कृति का निर्यात कर रहा था और दूसरी और नई संस्कृति का आयात कर रहा था।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस समय तक भारतीय समाज, शासन और संस्कृति में कई परिवर्तन हो चुके थे। इन परिवर्तनों के परिणाम आगे की सदी में प्रकट हुए और इन्होंने भारत के इतिहास को समृद्ध बनाया।